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आदम, एक दोपहर

इतालो कैल्विनो

चित्र और एनीमेशन: शेफाली जैन

अँग्रेज़ी से अनुवाद: मदन सोनी

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नए माली के लड़के के बाल लम्बे थे जिन्हें वह अपने सिर के इर्द-गिर्द कपड़े की एक पट्टी से हल्के-से कमानीदार गाँठ के साथ बाँधे रखता था। वह एक हाथ में पानी से ऊपर तक भरा हज़ारा थामे और उसके वज़न का सन्तुलन बनाए रखने दूसरे हाथ को ताने हुए क्यारी की बगल के रास्ते पर चला जा रहा था। वह नस्टर्शियम के पौधों में कुछ इस तरह धीरे-धीरे, सावधानी के साथ पानी डालता जा रहा था मानो कॉफी और दूध उँडेल रहा हो, और वह यह तब तक करता रहता जब तक कि हर पौधे के तल की ज़मीन नरम मुलायम धब्बे में नहीं बदल जाती थी; जब वह धब्बा बड़ा और पर्याप्त गीला हो जाता, तो वह हज़ारा उठाता और अगले पौधे की ओर बढ़ जाता। मारिया-नुन्ज़िआता उसे रसोई की खिड़की से देख रही थी, और सोच रही थी कि बागवानी का काम कितना अच्छा और शान्तिपूर्ण होता है। उसने देखा कि वह अब जवान हो गया था, लेकिन वह अभी भी हाफ पैण्ट पहनता था और उन लम्बे बालों की वजह से वह लड़की जैसा दिखता था। वह बर्तन माँजना बन्द कर खिड़की को थपथपाने

लगी।

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“ए, लड़के,” उसने आवाज़ लगाई।

माली के लड़के ने सिर उठाया, मारिया-नुन्ज़िआता को देखा और मुस्करा दिया। जवाब में वह हँसी, कुछ हद तक इसलिए कि उसने ऐसे लम्बे बालों वाले और सिर पर इस तरह की कमानी वाले लड़के को पहले कभी नहीं देखा था। माली के लड़के ने उसको हाथ हिलाकर बुलाया, और मारिया नुन्ज़िआता उसके इस कौतुकपूर्ण इशारे पर हँसती चली गई, और फिर उसने खुद हाथ से इशारा करके उसको बताया कि मुझे बर्तन माँजने हैं। लेकिन लड़के ने फिर से उसे बुलाने हाथ हिलाया, और दूसरे हाथ से डहलिया के गमलों की ओर इशारा किया। वह उन डहलियाओं की ओर क्यों इशारा कर रहा है? मारिया-नुन्ज़िआता ने खिड़की खोली और अपना हाथ बाहर निकाला।

“क्या है?” उसने पूछा, और वह फिर से हँसने लगी।

“तुम एक मज़ेदार चीज़ देखना चाहती हो?”

“क्या है?”

“एक मज़ेदार चीज़। आओ और देखो। फुर्ती-से।”

“बताओ तो क्या है।”

“मैं वह तुम्हें दूँगा। मैं तुम्हें एक बहुत ही मज़ेदार चीज़ दूँगा।”

“लेकिन मुझे बर्तन माँजने हैं, और मेम साब आ जाएँगी और मुझे नदारद पाएँगी।”

“तुम्हें यह चाहिए या नहीं चाहिए? अब आ भी जाओ।”

“एक सेकण्ड रुको,” मारिया नुन्ज़िआता ने कहा, और खिड़की बन्द कर दी।

जब वह रसोई के दरवाज़े से बाहर निकली, तो माली का लड़का अभी भी अपनी जगह पर था और नस्टर्शियम के पौधों को पानी दे रहा था।

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“हैलो,” मारिया-नुन्ज़िआता ने कहा।

मरिया-नुन्ज़ियाता अपने कद से लम्बी लग रही थी क्योंकि उसने ऊँची एड़ी के जूते पहन रखे थे, जिनको पहनकर काम करना दयनीय था, लेकिन उसे उनको पहनना बहुत अच्छा लगता था। उसके काले घुँघराले बालों के झुण्ड के बीच उसका छोटा-सा चेहरा किसी बच्चे के चेहरे जैसा लगता था, लेकिन उसके एप्रन की सलवटों के तले उसकी काया भरी-पूरी और पकी हुई थी। वह हमेशा हँसती रहती थी: या तो दूसरों की बातों पर या अपनी ही बातों पर।

“हैलो,” माली के लड़के ने कहा। उसके चेहरे, गर्दन और छाती की चमड़ी गहरे गेहुआँ रंग की थी; शायद इसलिए कि उसका आधा हिस्सा हमेशा नंगा रहता था, जैसेकि अभी था।

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“तुम्हारा नाम क्या है?” मारिया नुन्ज़िआता ने पूछा।

“लिबिरेज़ो,” माली के लड़के ने कहा।

मारिया-नुन्ज़िआता हँस पड़ी और दोहराने लगी: “लिबिरेज़ो...लिबिरेज़ो...क्या ही मज़ेदार नाम है, लिबिरेज़ो।”

“यह नाम एस्पिरान्तो में है,” उसने कहा। “एस्पिरान्तो में इसका मतलब होता है ‘आज़ादी’।”

“एस्पिरान्तो,” मारिया-नुन्ज़ियाता ने कहा। “क्या तुम एस्पिरान्तो हो?”

“एस्पिरान्तो एक भाषा है,” लिबिरेज़ो ने समझाया। “मेरे पिता एस्पिरान्तो बोलते हैं।”

“मैं कैलेब्रियाई हूँ,” मारिया-नुन्ज़िआता ने ज़ोर-से कहा।

“तुम्हारा नाम क्या है?”

“मारिया-नुन्ज़िआता,” उसने कहा और हँस पड़ी।

“तुम हमेशा हँसती क्यों रहती हो?”

“तुम एस्पिरान्तो क्यों कहलाते हो?”

“एस्पिरान्तो नहीं, लिबिरेज़ो।”

“क्यों?”

“तुम मारिया-नुन्ज़िआता क्यों कहलाती हो?”

“ये मैडोना का नाम है। मेरा नाम मैडोना के नाम पर है और मेरे भाई का नाम सेण्ट जोज़ेफ के नाम पर है।”

“सेन्जोज़ेफ?”

मारिया-नुन्ज़िआता ठहाका मारकर हँस पड़ी: “सेन्जोज़ेफ! सेन्जोज़ेफ नहीं, लिबिरेज़ो, सेण्ट जोज़ेफ!’’

“मेरे भाई का नाम ‘जर्मिनल’ है,” लिबिरेज़ो ने कहा, “और मेरी बहन का नाम ‘ओम्निआ’ है।”

“ये तुमने अच्छी बात कही,” मारिया-नुन्ज़िआता ने कहा, “दिखाओ मुझे वह क्या है।”

“तो, आओ,” लिबिरेज़ो ने कहा। उसने हज़ारा नीचे रख दिया और उसका हाथ थाम लिया।

मारिया-नुन्ज़िआता हिचकिचायी। “पहले मुझे बताओ कि वह है क्या।”

“तुम खुद देखोगी,” उसने कहा, “लेकिन तुम्हें वादा करना होगा कि तुम उसका खयाल रखोगी।”

“तुम वह मुझे दे दोगो?”

“हाँ, मैं वह तुम्हें दे दूँगा।” वह उसे बगीचे की दीवार के एक कोने तक ले जा चुका था। वहाँ गमलों में उगे हुए डहलिया उनके जितने ही लम्बे थे। 

“वह रहा।”

“क्या है?”

“रुको।”

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मारिया-नुन्ज़िआता उसके कन्धों के ऊपर से झाँकने लगी। लिबिरेज़ो एक गमले को हटाने के लिए झुका, फिर उसने दीवार के पास का एक और गमला उठाया, और ज़मीन की ओर इशारा किया।

“ये रहा,” उसने कहा।

“ये क्या है?” मारिया-नुन्ज़िआता ने पूछा। उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था; कोना छाया में डूबा हुआ था, गीली पत्तियों और बाग की फफूँद से भरा हुआ।

“देखो, वह चल रहा है,” लड़के ने कहा। फिर लड़की को कोई चीज़ दिखाई दी जो रेंगते हुए पत्थर या पत्ती जैसी लगती थी, कोई गीली-सी चीज़, जिसकी आँखें थीं और पैर थे; एक मेंढक।

“उई माँ!”

मारिया-नुन्ज़िआता ऊँची ऐड़ी के अपने जूतों के बल दबे-पाँव दहलियाओं के बीच चलने लगी। लिबिरेज़ो उस मेंढक के पास उकड़ूँ बैठ गया और अपने गेहुँआँ चेहरे के बीच अपने सफेद दाँत दिखाते हुए हँसने लगा।

“तुम्हें डर लग रहा है? ये महज़ एक मेंढक है! तुम डर क्यों रही हो?”

“मेंढक!” मारिया-नुन्ज़िआता ने गहरी साँस ली।

“बेशक यह मेंढक है। यहाँ आओ,” लिबिरेज़ो ने कहा।

उसने काँपती अँगुली से उसकी ओर इशारा किया। “इसे मार दो।”

उसने अपने हाथ आगे कर दिए, मानो वह उसको बचाना चाहता हो। “मैं मारना नहीं चाहता। यह बहुत भला है।”

“भला मेंढक?”

“सारे मेंढक भले होते हैं। वे केंचुए खाते हैं।”

“ओह!’’ मारिया-नुन्ज़िआता ने कहा, लेकिन वह उसके करीब नहीं गई। वह अपने एप्रन का कोना चबा रही थी और कनखियों से देखने की कोशिश कर रही थी।

“देखो, यह कितना प्यारा है,” लिबिरेज़ो ने कहा और उस पर अपना हाथ रख दिया।

मारिया-नुन्ज़िआता, जो अब हँस नहीं रही थी, उसके पास पहुँची और मुँह बाये देखने लगी। “नहीं! नहीं! उसे छुओ मत!”

लिबिरेज़ो अपनी एक अँगुली से मेंढक की घूसर-हरी पीठ थपथपा रहा था, जो छोटी-छोटी चिपचिपी गाँठों से ढँकी हुई थी।

“क्या तुम पागल हो? तुम जानते नहीं कि उनको छूने से वे तपने लगते हैं, और हाथों में सूजन पैदा कर देते हैं?”

लड़के ने उसे अपने बड़े गेहुआँ हाथ दिखाए, उसकी हथेलियाँ पीले रंग के भट्टों से भरी हुई थीं।

“ओह, यह मुझे नुकसान नहीं पहुँचाएगा,” उसने कहा, “और यह बहुत प्यारा है।”

अब उसने मेंढक की गर्दन पकड़कर उसको बिल्ली की तरह उठाकर अपनी हथेली पर रख लिया। मारिया-नुन्ज़िआता, जो अब भी अपने एप्रन का कोना चबाये जा रही थी, करीब आई और उसके बगल में उकड़ूँ बैठ गई।

“उई माँ!” वह आश्चर्य से बोली। 

वे दोनों दहलियाओं के पीछे उकड़ूँ बैठे हुए थे, और मारिया-नुन्ज़िआता के गुलाबी घुटने लिबिरेज़ो के गेहुआँ, रगड़ खाए घुटनों को छू रहे थे। लिबिरेज़ो ने अपनी दूसरी हथेली को कप की शक्ल देकर मेंढक की पीठ पर रख दिया, और जैसे ही वह फिसलने लगता वैसे ही उसको उस हथेली से पकड़ लेता।

“तुम इसे थपथपाओ, मारिया-नुन्ज़िआता,” उसने कहा। 

लड़की ने अपने हाथ अपने एप्रन में छिपा लिए।

“नहीं,” वह सख्त स्वर में बोली।

“क्या?” लड़के ने कहा। “तुम्हें यह नहीं चाहिए?”

मारिया-नुन्ज़िआता ने अपनी आँखें झुकाईं, मेंढक की ओर नज़र डाली, और उनको फिर से झुका लिया।

“नहीं,” उसने कहा।

“लेकिन ये तुम्हारा है। मैं ये तुम्हें दे रहा हूँ,” लिबिरेज़ो ने कहा।

मारिया-नुन्ज़िआता की आँखों में उदासी छा गई। किसी तोहफे से इन्कार करना दुख की बात थी, उसे कभी किसी ने कोई तोहफा नहीं दिया था, लेकिन यह मेंढक वाकई उसे विकर्षित कर रहा था।

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“तुम चाहो तो इसे अपने घर ले जा सकती हो, यह तुम्हारा साथी होगा।”

“नहीं,” उसने कहा।

लिबिरेज़ो ने मेंढक को वापस ज़मीन पर रख दिया और वह फुर्ती-से उछलकर पत्तियों के नीचे जा छिपा।

“गुड-बाय, लिबिरेज़ो।”

“एक मिनिट रुको।”

“लेकिन मुझे जाना होगा और बर्तनों की सफाई पूरी करनी होगी। मेम साब को मेरा बगीचे में आना पसन्द नहीं है।”

“रुको। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। एक वाकई अच्छी चीज़। मेरे साथ आओ।”

वह बजरी के रास्ते पर उसके पीछे चल पड़ी। क्या ही अजीब लड़का है यह लिबिरेज़ो, इतने लम्बे बालों वाला और अपने हाथों से मेंढक को पकड़ लेने वाला।

“तुम्हारी क्या उम्र है, लिबिरेज़ो?”

“पन्द्रह। और तुम्हारी?”

“चौदह।”

“अभी, या तुम्हारे अगले जन्मदिन पर?”

“मेरे अगले जन्मदिन पर। अज़म्प्शन डे।”

“वह क्या अब बीत चुका है?”

“क्या, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अज़म्प्शन डे क्या होता है?” वह हँसने लगी।

“नहीं।”

“अज़म्प्शन डे, जब जुलूस निकलता है। क्या तुम उस जुलूस में नहीं जाते?”

“मैं? नहीं।”

“हमारे गाँव में तो सुन्दर जुलूस निकलते हैं। यहाँ वैसा नहीं है, हमारे यहाँ जैसा।” वहाँ बड़े-बड़े खेत हैं बर्गामोट से भरे हुए, बर्गामोट ही बर्गामोट, और हर कोई सुबह से रात तक बर्गामोट ही तोड़ता रहता है। मेरे चौदह भाई-बहन हैं और वे सब बर्गामोट ही तोड़ते हैं; पाँच तो तभी मर गए थे जब वे बहुत छोटे थे, और फिर मेरी माँ को टिटेनस हो गया था, और हम लोगों ने अंकल कार्मेलो के यहाँ जाने के लिए एक हफ्ता ट्रेन में गुज़ारा था, और हम सभी आठों लोग वहाँ गैरेज में सोए थे। ये बताओ कि तुम्हारे बाल इतने लम्बे क्यों हैं?”

वे रुक गये थे।

“क्योंकि वे इसी तरह बढ़ते हैं। तुम्हारे बाल भी तो लम्बे हैं।”

“मैं लड़की हूँ। अगर तुम लम्बे बाल रखते हो, तो तुम लड़की जैसे हो।”

“मैं लड़की जैसा नहीं हूँ। लड़के और लड़की का फर्क बालों से नहीं पहचाना जाता।”

“बालों से नहीं?”

“नहीं, बालों से नहीं।”

“बालों से क्यों नहीं?”

“क्या तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें कुछ अच्छी चीज़ दूँ?”

“हाँ, ज़रूर।”

लिबिरेज़ो एरम लिली के पौधों के बीच चलने लगा, जो आसमान की पृष्ठभूमि में सफेद तुरहियों की तरह खड़े थे। लिबिरेज़ो ने हरेक को दो अँगुलियों से छूकर जाँचा-परखा, और फिर कोई चीज़ अपनी मुट्ठी में छिपा ली। मारिया-नुन्ज़िआता फूलों की क्यारियों तक नहीं गई थी, और उसे चुपचाप हँसते हुए देख रही थी। अब यह क्या करने वाला है? लिबिरेज़ो अब तक सारी लिली को जाँच चुका था। वह एक हथेली को दूसरी हथेली पर रखे हुए उसके पास आया।

“अपने हाथ खोलो,” उसने कहा। मारिया-नुन्ज़िआता ने अपनी हथेलियों को चुल्लू के आकार में मोड़ा, लेकिन वह उनको उसकी हथेलियों के नीचे रखने से डर रही थी। 

“तुमने वहाँ क्या छुपा रखा है?”

“एक बहुत ही अच्छी चीज़। तुम देखोगी?”

“पहले मुझे दिखाओ।”

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लिबिरेज़ो ने अपनी मुट्ठी पर से हाथ हटाकर उसको खोला और उसे अन्दर देखने दिया। उसकी हथेली बहुरंगी कीड़ों से भरी हुई थी, लाल और काले और बैंगनी, लेकिन हरे रंग के कीड़े सबसे प्यारे थे। वे भनभना रहे थे और एक-दूसरे पर फिसलते हुए अपने छोटे-छोटे काले पैर हवा में लहरा रहे थे। मारिया नुन्ज़िआता ने अपने हाथ एप्रन के नीचे छुपा लिए।

“ये रहे,” लिबिरेज़ो ने कहा। “क्या तुम्हें पसन्द नहीं आए?”

“हाँ,” मारिया-नुन्ज़ियाता ने अनिश्चय के भाव से कहा। वह अभी भी अपने हाथ एप्रन के भीतर किए हुए थी।

“जब इनको ज़ोर-से पकड़ते हैं, तो ये गुदगुदी करते हैं; तुम महसूस करना चाहोगी?”

मारिया-नुन्ज़िआता ने सकुचाते हुए अपने हाथ बढ़ाए, और लिबिरेज़ो ने उन पर हर रंग के ढेर सारे कीड़े उँडेल दिए।

“डरना मत, वे तुम्हें काटेंगे नहीं।”

“उई माँ!” यह उसे सूझा ही नहीं था कि वे उसको काट सकते हैं। उसने अपनी हथेलियाँ खोल दीं और उन कीड़ों ने अपने पंख खोले और वे सुन्दर रंग गायब हो गए और चारों ओर उड़ते और यहाँ-वहाँ बैठते काले कीड़ों के अलावा वहाँ कुछ भी नहीं बचा।

“कितने दुख की बात है। मैंने तुम्हें एक तोहफा देने की कोशिश की और तुम हो कि उसे चाहती ही नहीं।”

“अब मुझे जाना होगा और बर्तन माँजने होंगे। अगर मैं मेम साब को घर पर नहीं मिली तो वे नाराज़ होंगी।”

“तुम तोहफा नहीं चाहतीं?”

“अब तुम मुझे क्या देने वाले हो?”

“आओ और देखो।”

उसने एकबार फिर से उसका हाथ थामा और उसे फूलों की क्यारियों के बीच से ले गया। 

“लिबिरेज़ो, मुझे जल्दी ही रसोई में वापस लौटना चाहिए। अभी मुझे वहाँ एक चिकन को भी साफ करना है।”

“छी!”

“छी क्यों?”

“हम लोग मरे हुए पक्षियों या जानवरों का मांस नहीं खाते।”

“क्यों, क्या तुम लोग हर वक्त उपवास रखते हो?”

“क्या मतलब?”

“मतलब यह कि तब तुम लोग क्या खाते हो?”

“ओह, सब तरह की चीज़ें, चुकन्दर, सलाद के पत्ते, टमाटर। मेरे पिता को यह पसन्द नहीं है कि हम लोग मरे हुए जानवरों का गोश्त खाएँ। या कॉफी या शक्कर भी।”

“तब तुम लोग शक्कर के राशन का क्या करते हो?”

“उसको ब्लैक मार्केट में बेच देते हैं।”

वे कुछ लताओं के करीब पहुँच गए थे, जो लाल फूलों से लदी हुई थीं।

“कितने सुन्दर फूल हैं,” मारिया-नुन्ज़िआता ने कहा। “तुम इनको कभी तोड़ते हो?”

“काहे के लिए?”

“मैडोना के पास ले जाने। फूल मैडोना के लिए बने हैं।”

“मेसेम्ब्रियेन्थेमॅम।”

“ये क्या है?”

“इस पौघे को लैटिन में मेसेम्ब्रियेन्थेमॅम कहा जाता है। सारे फलों के लैटिन नाम होते हैं।”

“मांस भी लेटिन में है?”

“इसके बारे में मैं नहीं जानता।”

लिबिरेज़ो अब दीवार की घुमावदार शाखाओं के बीच झाँक रहा था।

“वो रहा,” उसने कहा।

“क्या है?”

वह काले धब्बों वाला एक हरा गिरगिट था, जो धूप का आनन्द ले रहा था।

“मैं उसे पकड़ूँगा।”

“नहीं।”

लेकिन वह गिरगिट के करीब जा पहुँचा, बहुत दबे पाँव, दोनों हाथ खोले हुए; उसने एक छलांग लगाई और उसको पकड़ लिया। वह खुश होकर, अपने सफेद दाँत दिखाता हुआ, हँसने लगा। “देखना, वह भाग रहा है!” पहले एक भौंचक सिर, फिर एक पूँछ, उसकी मुड़ी हुई अँगुलियों के बीच से बाहर फिसलने लगी। मारिया-नुन्ज़िआता भी हँस रही थी, हर बार जैसे ही वह गिरगिट को देखती, वह उछलकर पीछे हट जाती और अपने स्कर्ट को अपने घुटनों तक कसकर खींच लेती।

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“मतलब यह है कि तुम वाकई नहीं चाहतीं कि मैं तुम्हें कुछ दूँ,” लिबिरेज़ो ने किंचित दुखी मन से कहा, और फिर उसने बहुत सावधानी के साथ गिरगिट को वापस दीवार पर रख दिया; वह तुरन्त भाग खड़ा हुआ। मारिया-नुन्ज़िआता अपनी नज़रें झुकाए रही।

“मेरे साथ आओ,” लिबिरेज़ो ने कहा, और फिर से उसका हाथ थाम लिया।

“मैं चाहती हूँ कि मेरे पास लिपिस्टिक हो और मैं अपने होंठों को लाल रंगकर इतवार के दिनों में बाहर नाचने को जाऊँ। और इसके बाद बेनेडिक्शन पर अपने सिर पर डालने के लिए एक काला नकाब।”

“इतवारों को तो मैं अपने भाई के साथ जंगल जाता हूँ और हम दो बोरे भर चीड़ के कोन लेकर आते हैं। इसके बाद शाम को मेरे पिता ज़ोर-ज़ोर-से क्रोपोट्किन के हिस्सों का पाठ करते हैं। मेरे पिता के बाल उनके कन्धों तक आते हैं और दाढ़ी उनकी छाती तक झूलती रहती है। और वे गर्मियों में और जाड़ों में हाफ पैण्ट पहनते हैं। और मैं एनार्किस्ट फेडरेशन विण्डोज़ के लिए ड्रॉइंग करता हूँ। टॉप हैट वाली तस्वीरें व्यापारियों की होती हैं, जो टोपियाँ पहने होते हैं वे जनरल होते हैं, और गोल टोप पहने होते हैं वे पादरी होते हैं; इसके बाद मैं उनमें वॉटर कलर भरता हूँ।”

वे चलते हुए एक पोखर तक आ गए जिसमें कमल की गोल पत्तियाँ तैर रही थीं।

“अब बिलकुल चुप रहना,” लिबिरेज़ो ने आदेश दिया।

पानी के नीचे एक मेंढक को अपने हरे हाथों-पैरों के सहारे हल्के-हल्के तैरते देखा जा सकता था। वह अचानक पानी की सतह पर आया, उछला और कमल के पत्ते के बीच जाकर बैठ गया।

“वह रहा,” लिबिरेज़ो ज़ोर-से बोला और उसको पकड़ने उसने अपना हाथ बढ़ाया, लेकिन मारिया-नुन्ज़िआता के मुँह से चीख निकल गई, “उह!” और मेंढक वापस पानी में उछल गया। लिबिरेज़ो उसको ढूँढ़ने लगा, उसकी नाक लगभग पानी की सतह को छू रही थी।

“वह रहा।”

उसने तेज़ी-से एक हाथ डाला और उसे बन्द मुट्ठी में निकाल लिया।

“एक साथ दो हैं,” वह चिल्लाया। “देखो। वे दो हैं, एक के ऊपर एक।”

“क्यों?” मारिया-नुन्ज़िआता ने पूछा।

“नर और मादा एक-दूसरे से चिपके हुए हैं,” लिबिरेज़ो ने कहा। “देखो वे क्या कर रहे हैं।” और उसने उन मेंढकों को मारिया-नुन्ज़िआता के हाथ में रखने की कोशिश की। मारिया-नुन्ज़िआता निश्चय नहीं कर पा रही थी कि वह इसलिए डरी हुई थी कि वे मेंढक थे, या इसलिए कि वे एक-दूसरे से चिपके हुए नर और मादा थे।

“उनको अकेला छोड़ दो,” उसने कहा। “तुम्हें उनको नहीं छूना चाहिए।”

“नर और मादा,” लिबिरेज़ो ने दोहराया। “वे मेंढक के बच्चे तैयार कर रहे हैं।” सूरज पर से एक बादल गुज़रा। सहसा मारिया-नुन्ज़िआता को बेचैनी महसूस होने लगी।

“देर हो गई है। मेम साब निश्चय ही मुझे ढूँढ़ रही होंगी।”

लेकिन वह गई नहीं। इसकी बजाय वे आसपास भटकते रहे हालाँकि, सूरज दोबारा बाहर नहीं आया था। तभी उसे (लड़के को) एक साँप मिला: वह बाँस के झुरमुट के पीछे एक बहुत छोटा-सा साँप था। लिबिरेज़ो ने उसे अपनी बाँह पर लपेट लिया और उसका सिर थपथपाया।

“एक वक्त था जब मैं साँपों को प्रशिक्षण दिया करता था। मेरे पास एक दर्जन साँप थे, उनमें से एक लम्बा और पीला था, पनियल साँप। लेकिन उसने अपनी केंचुल उतारी और भाग गया। इसे देखो, ये कैसे अपना मुँह खोल रहा है, देखो इसकी जीभ कैसे बीच से दो-फाँक है। इसे थपथपाओ, ये काटेगा नहीं।”

लेकिन मारिया नुन्ज़िआता साँपों से भी डरती थी। इसके बाद वे चट्टानों से घिरे पोखर पर गए। पहले उसने (लड़के ने) उसे फव्वारा दिखाया, और उसके सारे सूराख खोल दिए, जिसे देखकर वह बहुत खुश हुई। फिर उसने उसे सुनहरी मछली दिखाई। वह एक अकेली बूढ़ी मछली थी, और उसकी पपड़ियाँ सफेद हो चली थीं। आखिरकार; मारिया-नुन्ज़िआता को वह सुनहरी मछली भा गई। लिबिरेज़ो उसको पकड़ने के लिए पानी के अन्दर अपने हाथ घुमाने लगा; यह बहुत मुश्किल था, लेकिन अगर वह उसको पकड़ लेता, तो मारिया-नुन्ज़िआता उसको एक कटोरे में डालकर, रसोई में रख सकती थी। उसने उसको किसी तरह पकड़ तो लिया, लेकिन यह सोचकर पानी से बाहर नहीं निकाला कि इससे उसका दम घुट सकता था।

“तुम अपने हाथ यहाँ डालो, इसे थपथपाओ,” लिबिरेज़ो ने कहा। “तुम इसका साँस लेना महसूस कर सकती हो; इसके पर कागज़ जितने पतले हैं और पपड़ियाँ चुभती हैं, हालाँकि बहुत नहीं चुभतीं।”

लेकिन मारिया-नुन्ज़िआता मछली को भी नहीं थपथपाना चाहती थी। पेतूनिया की क्यारी की ज़मीन बहुत मुलायम थी, और लिबिरेज़ो ने अपनी अँगुलियों से खोदकर कुछ लम्बे, कोमल केंचुए निकाले।

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लेकिन मारिया-नुन्ज़िआता हल्की-सी चीख मारती हुई वहाँ से दूर जा खड़ी हुई।

“अपना हाथ यहाँ रखो,” लिबिरेज़ो ने आड़ू के एक पुराने पेड़ के तने की ओर इशारा करते हुए कहा। मारिया-नुन्ज़िआता को समझ में तो नहीं आया कि वह वैसा करने को क्यों कह रहा था, लेकिन तब भी उसने अपना हाथ वहाँ रख दिया; लेकिन फिर वह चीख़ पड़ी और पोखर में अपना वह हाथ डुबाने वहाँ से भागी; क्योंकि जब उसने वहाँ से अपना हाथ खींचा था, तो वह चींटियों से ढँका हुआ था। आड़ू के उस दरख्त पर उनका अम्बार लगा हुआ था, छोटी-छोटी काली ‘अर्हेन्ताइन’ चींटियाँ।

“देखो,” लिबिरेज़ो ने कहा और अपना एक हाथ तने पर रख दिया। चींटियाँ साफ तौर पर उसके हाथ पर रेंग रही थीं लेकिन उसने उनको झाड़कर अलग नहीं किया।

“क्यों?” मारिया नुन्ज़िआता ने पूछा। “तुम खुद को चींटियों से क्यों ढँक रहे हो?”

उसका हाथ अब खासा काला था, और अब वे उसकी कलाई पर रेंग रही थीं।

“अपना हाथ दूर रखो,” मारिया-नुन्ज़िआता गिड़गिड़ाई। “वे तुम्हारे सारे शरीर पर चढ़ जाएँगी।”

चींटियाँ उसकी नंगी बाँह पर रेंग रही थीं, और उसकी कुहनी तक पहुँच चुकी थीं।

अब उसकी पूरी बाँह रेंगते काले बिन्दुओं की तह से ढँक चुकी थी; वे उसकी काँख तक पहुँच गईं लेकिन उसने उनको झटककर अलग नहीं किया।

“उनसे छुटकारा पाओ, लिबिरेज़ो। अपना हाथ पानी में डाल दो!”

लिबिरेज़ो हँसा, कुछ चींटियाँ तो अब उसकी गर्दन से होती हुई उसके चेहरे तक पर रेंगने लगी थीं।

“लिबिरेज़ो! तुम जो भी चाहोगे मैं करूँगी! मैं वे सारे तोहफे मंज़ूर करने को तैयार हूँ जो तुमने मुझे दिए थे।”

उसने एक झटके-से अपनी बाँहें उसके गले में डाल दीं और चींटियों को झाड़ने लगी।

लिबिरेज़ो ने अपनी गेहुँइ और सफेद हँसी हँसते हुए पेड़ से अपना हाथ हटा लिया और उदासीन भाव से अपनी बाँह को झाड़ने लगा। लेकिन साफ दिख रहा था कि वह भावविह्वल था।

“तब ठीक है, मैं तुम्हें सचमुच एक बड़ा तोहफा दूँगा, मैंने फैसला कर लिया है। वह सबसे बड़ा तोहफा जो मैं दे सकता हूँ।”

“वह क्या है?”

“एक साही।”

“उई माँ! मेम साब! मेम साब मुझे बुला रही हैं!”

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मारिया-नुन्ज़िआता ने अभी बर्तन साफ ही किए थे कि तभी उसे खिड़की पर कंकड़ के टकराने की आवाज़ सुनाई दी। खिड़की के नीचे लिबिरेज़ो एक बड़ी टोकरी लिए खड़ा था।

“मारिया-नुन्ज़िआता, मुझे अन्दर आने दो। मैं तुम्हें एक सरप्राइज़ देना चाहता हूँ।”

“नहीं, तुम ऊपर नहीं आ सकते। वह तुम क्या लिए हो?”

लेकिन तभी मेम साब ने घण्टी बजाई, और मारिया-नुन्ज़िआता वहाँ से चली गई।

जब वह रसोई में वापस लौटी, तो लिबिरेज़ो कहीं दिखाई नहीं दिया। न रसोई के अन्दर, न खिड़की के नीचे। मारिया-नुन्ज़िआता सिंक के पास गई। और तब उसने वह सरप्राइज़ देखा।

उस हर प्लेट पर, जो उसने वहाँ सुखाने के लिए रख छोड़ी थी, एक मेंढक दुबका हुआ था; एक डेगची में एक साँप कुण्डली मारे बैठा था, सूप के एक कटोरे में गिरगिट भरे हुए थे, सारे ग्लासों पर चिपचिपी जोंकें रंगबिरंगी लकीरें बना रहा थीं। पानी से लबालब भरे बेसिन में वह अकेली बूढ़ी सुनहरी मछली तैर रही थी।

मारिया-नुन्ज़िआता पीछे हट गई, लेकिन उसे अपने पैरों के बीच एक बड़ा मेंढक दिखाई दिया। और उसके पीछे एक कतार में पाँच छोटे-छोटे मेंढक थे, जो स्याह-सफेद टाइलों से ढँके फर्श पर धीरे उछल रहे थे।


 

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©2020  Shefalee Jain

 

Adam, Ek Dopahar by Shefalee Jain

 

BlueJackal Publication June 2020

 

यह कहानी हिंदी में पहले ’सन्दर्भ‘ issue 128, May 2020 (एकलव्य, भोपाल) में प्रकाशित हुई। मैं एकलव्य और अनुवादक मनोज सोनी जी की आभारी हूँ कि उन्होंने BlueJackal को इस कहानी को फिर से प्रकाशित करने की इजाज़त दी।

इतालो काल्विनो (1923-1985): इतालवी पत्रकार और लघुकथा लेखक व उपन्यासकार। इनके श्रेष्ठतम कामों में अवर एंसिस्टर्स (ट्रायलॉजी), कॉस्मीकॉमिक्स (लघुकथाओं का संकलन) और इंविज़िबल सिटीज़ एवं इफ ऑन अ विन्टर्स नाइट अ ट्रेवेलर (उपन्यास) शामिल हैं।  

अँग्रेज़ी से अनुवाद: मदन सोनी: आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय वरिष्ठ हिन्दी लेखक व अनुवादक। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। इन्होंने उम्बर्तो एको के उपन्यास द नेम ऑफ दि रोज़, डैन ब्रााउन के उपन्यास दि द विंची कोड और युवाल नोह हरारी की किताब सेपियन्स: अ ब्राीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड समेत अनेक पुस्तकों के अनुवाद किए हैं।

सभी चित्र और एनीमेशन: शेफाली जैन: चित्रकार हैं और BlueJackal के फाउंडर मेंबर में से एक है। वर्तमान में अम्बेडकर युनिवर्सिटी, दिल्ली में सहायक प्रोफेसर हैं। आप उनके अन्य काम उनकी वेबसाइट पर देख सकते हैं.

To read the story in English visit this link.

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